''आप की याद आती रही रात भर''
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर
फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
ग़ज़ल
''आप की याद आती रही रात भर''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़