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आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं | शाही शायरी
aap jaison ke liye isMein rakha kuchh bhi nahin

ग़ज़ल

आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं

जव्वाद शैख़

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आप जैसों के लिए इस में रखा कुछ भी नहीं
लेकिन ऐसा तो न कहिए कि वफ़ा कुछ भी नहीं

आप कहिए तो निभाते चले जाएँगे मगर
इस तअ'ल्लुक़ में अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं

मैं किसी तरह भी समझौता नहीं कर सकता
या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नहीं

कैसे जाना है कहाँ जाना है क्यूँ जाना है
हम कि चलते चले जाते हैं पता कुछ भी नहीं

हाए इस शहर की रौनक़ के मैं सदक़े जाऊँ
ऐसी भरपूर है जैसे कि हुआ कुछ भी नहीं

फिर कोई ताज़ा सुख़न दिल में जगह करता है
जब भी लगता है कि लिखने को बचा कुछ भी नहीं

अब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भरम भी न रखूँ
मान लेता हूँ कि उस शख़्स में था कुछ भी नहीं

मैं ने दुनिया से अलग रह के भी देखा 'जव्वाद'
ऐसी मुँह-ज़ोर उदासी की दवा कुछ भी नहीं