आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
शहर को देर तक रुला ऐ दश्त
किस को आवाज़ दूँ मैं तेरे सिवा
कौन है मेरा आश्ना ऐ दश्त
अब तो बारिश में भी नहीं हँसते
तेरे पेड़ों को क्या हुआ ऐ दश्त
क़ैस के पावँ में था रक़्साँ जो
वो बगूला किधर गया ऐ दश्त
ख़ाक ही ख़ाक को उड़ाती है
ख़ूब है तेरा सिलसिला ऐ दश्त
ग़ज़ल
आप-बीती ज़रा सुना ऐ दश्त
बलवान सिंह आज़र