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आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई | शाही शायरी
aap bhi nahin aae nind bhi nahin aai

ग़ज़ल

आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई

शहज़ाद अहमद

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आप भी नहीं आए नींद भी नहीं आई
नीम-वा दरीचों से झाँकती है तन्हाई

जाग जाग उठते हैं गन-कली के मीठे सुर
छेड़ छेड़ जाती है गेसुओं की पुर्वाई

यूँ मिरे ख़यालों में तेरी याद रक़्साँ है
जिस तरह फ़ज़ाओं में गूँजती है शहनाई

गर्द-ए-राह भी चुप है संग-ए-मील भी ख़ामोश
तालिबान-ए-मंज़िल की कुछ ख़बर नहीं आई

इक तरफ़ ग़म-ए-दुनिया इक तरफ़ तिरी यादें
आज कल हयूलों से खेलते हैं सौदाई

जिन गुलों ने पाया हो रंग-ओ-बू बगूलों से
कौन छीन सकता है उन गुलों की रानाई

ये तने तने अबरू ये हरा-भरा चेहरा
हम ने क़हर सी लज़्ज़त प्यार में नहीं पाई

अब तो साफ़ सुनता हूँ अपने दिल की हर धड़कन
और क्या दिखाएगी ये तवील तन्हाई

बज़्म-ए-दोस्त में 'शहज़ाद' तुम भी कुछ हँसो बोलो
चुप रहे से होती है दूर दूर रुस्वाई