आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
फाड़ें सीना ही गो हाथ आए गरेबाँ इतने
आह कोई जो उसे आन के समझाता हो
देखते हैं खड़े हिन्दू ओ मुसलमाँ इतने
सच कह ऐ बाद-ए-सबा है किसी गुल पर ये बहार
तू ने देखे हैं ज़माने के गुलिस्ताँ इतने
शोर महशर का रहे क्यूँ न तिरे कूचे में
जिस जगह होवें इकट्ठे दिल-ए-नालाँ इतने
हम से वामाँदों को अल्लाह निबाहे तो निभें
तन सो ये ख़स्ता ओ दरपेश बयाबाँ इतने
दम भी कुछ चीज़ है जब चूक गया बात तमाम
कौन सी ज़ीस्त पे तू करता है सामाँ इतने
तुझ को 'क़ाएम' रखे अल्लाह बहुत सा ऐ अमीर
मुजतमा साए में हैं जिस के सुख़न-दाँ इतने
ग़ज़ल
आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
क़ाएम चाँदपुरी