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आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना | शाही शायरी
aansuon ke tufan mein bijliyan dabi rakhna

ग़ज़ल

आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना

अख़तर मुस्लिमी

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आँसुओं के तूफ़ाँ में बिजलियाँ दबी रखना
सर्द सर्द आहों में गर्मियाँ दबी रखना

कैफ़ियत ग़म-ए-दिल की हो अयाँ न चेहरे से
पर्दा-ए-तबस्सुम में तल्ख़ियाँ दबी रखना

कौन सुनने वाला है बे-हिसों की दुनिया में
अपने ग़म की सीने में दास्ताँ दबी रखना

किस क़दर अनोखा है शेवा अहल-ए-दुनिया का
मीठी मीठी बातों में तल्ख़ियाँ दबी रखना

ख़ूब है तुम्हारा भी ये कमाल-ए-फ़न 'अख़्तर'
सादा सादा शेरों में शोख़ियाँ दबी रखना