आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता 
आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता 
अल्लाह-रे नादान जवानी की उमंगें! 
जैसे कोई बाज़ार सजाया नहीं जाता 
आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो 
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता 
बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी 
लेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता 
जिस तार को छेड़ें वही फ़रियाद-ब-लब है 
अब हम से 'अदम' साज़ बजाया नहीं जाता
 
        ग़ज़ल
आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता
अब्दुल हमीद अदम

