आँखों से कभी कूचा-ए-जानाँ नहीं देखा
बुलबुल हूँ मगर सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं देखा
कहते हैं दुपट्टे से छुपा कर रुख़-ए-रौशन
देखो ये चराग़-ए-तह-ए-दामाँ नहीं देखा

ग़ज़ल
आँखों से कभी कूचा-ए-जानाँ नहीं देखा
बिल्क़ीस बेगम
ग़ज़ल
बिल्क़ीस बेगम
आँखों से कभी कूचा-ए-जानाँ नहीं देखा
बुलबुल हूँ मगर सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं देखा
कहते हैं दुपट्टे से छुपा कर रुख़-ए-रौशन
देखो ये चराग़-ए-तह-ए-दामाँ नहीं देखा