आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया
मिट्टी में मोतियों को बिखरने नहीं दिया
जिस राह पर पड़े थे तिरे पाँव के निशाँ
इस राह से किसी को गुज़रने नहीं दिया
चाहा तो चाहतों की हदों से गुज़र गए
नश्शा मोहब्बतों का उतरने नहीं दिया
हर बार है नया तिरे मिलने का ज़ाइक़ा
ऐसा समर किसी भी शजर ने नहीं दिया
ये हिज्र है तो इस का फ़क़त वस्ल है इलाज
हम ने ये ज़ख़्म-ए-वक़्त को भरने नहीं दिया
इतने बड़े जहान में जाएगा तू कहाँ
इस इक ख़याल ने मुझे मरने नहीं दिया
साहिल दिखाई दे तो रहा था बहुत क़रीब
कश्ती को रास्ता ही भँवर ने नहीं दिया
जितना सकूँ मिला है तिरे साथ राह में
इतना सुकून तो मुझे घर ने नहीं दिया
इस ने हँसी हँसी में मोहब्बत की बात की
मैं ने 'अदीम' उस को मुकरने नहीं दिया
ग़ज़ल
आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया
अदीम हाशमी