आँखों के आबगीने बहे फूट फूट कर
यूँ दिल ने तुझ से प्यार किया टूट टूट कर
जंगल सभी कटे सजे मंडप सभी हटे
राजेश खो गए कहीं राधा से रूठ कर
मत कह उसे नटोर निगोड़ा निडर सखी
पी है मिरा मैं जाऊँ कहाँ उस से छूट कर
बंधन जगत के पाँव की ज़ंजीर ही सही
आ तज के ये रिवायतें इस सच को झूट कर
जुगनू ने इस से पूछा चली है किधर बता
ज़ुल्फ़ों में रात चाँदनी चेहरे पे लूट कर
क़र्ज़े चुकाए मन्नतें उठवाईं लाए लोग
जब बस्तियों में खेतों से ये धान कूट कर
ज्ञानी वो गीत रीत का शब्दों का शुभ कवी
रहने दे यार छोड़ न यूँ ख़ुद को हूट कर
ग़ज़ल
आँखों के आबगीने बहे फूट फूट कर
नासिर शहज़ाद