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आँखें जहाँ हों बंद अँधेरा वहीं से है | शाही शायरी
aankhen jahan hon band andhera wahin se hai

ग़ज़ल

आँखें जहाँ हों बंद अँधेरा वहीं से है

फ़रासत रिज़वी

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आँखें जहाँ हों बंद अँधेरा वहीं से है
जागे हैं हम जहाँ से सवेरा वहीं से है

जिस जा से है शुरूअ' मिरा कुंज-ए-आरज़ू
साया भी नख़्ल-ए-ग़म का घनेरा वहीं से है

उजड़ा हुआ वो बाग़-ए-जहाँ हम जुदा हुए
आसेब-ए-ग़म का दिल पे बसेरा वहीं से है

दूर इक चराग़-ए-कुश्ता पड़ा है ज़मीन पर
शायद सितम की रात का डेरा वहीं से है