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आँखें हैं सुर्ख़ होंट सियह रंग ज़र्द है | शाही शायरी
aankhen hain surKH honT siyah rang zard hai

ग़ज़ल

आँखें हैं सुर्ख़ होंट सियह रंग ज़र्द है

मुर्तज़ा बिरलास

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आँखें हैं सुर्ख़ होंट सियह रंग ज़र्द है
हर शख़्स जैसे मेरे क़बीले का फ़र्द है

जब मैं न था तो मेरी ज़माने में गूँज थी
अब मैं हूँ और सारे ज़माने का दर्द है

सूरज में आज जितनी तपिश है कभी न थी
क्या कीजिए कि ख़ूँ ही रग ओ पय में सर्द है

हम किस सफ़र पे निकले कि शक्लें बदल गईं
चेहरे पे जिस के देखो मसाफ़त की गर्द है

चलता रहे जो आबला-पाई के बावजूद
मंज़िल का मुस्तहिक़ वही सहरा-नवर्द है

ऐसा न हो सहर मेरी बीनाई छीन ले
बेदारियों से अब मिरी आँखों में दर्द है

बिखरा हुआ हूँ ख़्वाहिश-ओ-हसरत के दरमियाँ
जैसे मिरा वजूद अभी फ़र्द फ़र्द है