EN اردو
आँख से ख़्वाब का रिश्ता नहीं रहने देती | शाही शायरी
aankh se KHwab ka rishta nahin rahne deti

ग़ज़ल

आँख से ख़्वाब का रिश्ता नहीं रहने देती

फ़रासत रिज़वी

;

आँख से ख़्वाब का रिश्ता नहीं रहने देती
याद उस की मुझे तन्हा नहीं रहने देती

लज़्ज़त-ए-दर-ब-दरी में बड़ी वुसअ'त है कि ये
दर-ओ-दीवार का झगड़ा नहीं रहने देती

घर हो या रौनक़-ए-बाज़ार कहीं भी जाऊँ
बे-क़रारी तो किसी जा नहीं रहने देती

बंद कर लूँ तो अजब नक़्श नज़र आते हैं
आँख महरूम-ए-तमाशा नहीं रहने देती

ख़्वाहिश-ए-ज़र की हवा दिल के सियह-ख़ाने में
इक दिया है जिसे जलता नहीं रहने देती