आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है
ये किस ने सहरा में ला कर सहरा छोड़ दिया है
जिस्म की बोरी से बाहर भी कभी निकल आऊँगा
अभी तो इस पर ख़ुश हूँ उस ने ज़िंदा छोड़ दिया है
ज़ेहन मिरा आज़ाद है लेकिन दिल का दिल मुट्ठी में
आधा उस ने क़ैद रखा है आधा छोड़ दिया है
जहाँ दुआ मिलती थी अल्लाह जोड़ी सलामत रक्खे
मैं ने तेरे बा'द उधर से गुज़रना छोड़ दिया है
चारों शाने चित मिट्टी पर गिरा पड़ा हूँ 'ताबिश'
जाने किस ने दूसरी जानिब रस्सा छोड़ दिया है
ग़ज़ल
आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश