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आँख इम्कान से भरी हुई थी | शाही शायरी
aankh imkan se bhari hui thi

ग़ज़ल

आँख इम्कान से भरी हुई थी

राशिदा माहीन मलिक

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आँख इम्कान से भरी हुई थी
और मैं ख़्वाब में डरी हुई थी

ज़ख़्म गिनती थीं उँगलियाँ अपने
कोशिश-ए-आइना-गरी हुई थी

हिज्र क्या ख़ूब कैफ़ियत लाया
इन दिनों कितनी शायरी हुई थी

क्या इसी में ही इश्क़ पिन्हाँ था
इक निगह वो भी सरसरी हुई थी

कैसा महसूस हो रहा था तुम्हें
जब मदीने में हाज़िरी हुई थी

उस ने आँखों में बात की मुझ से
ख़ामुशी होंट पर धरी हुई थी

सब्ज़ तितली थी 'राशिदा' माहीन
नर्गिसी फूल पर मरी हुई थी