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आने वाला इंक़लाब आया नहीं | शाही शायरी
aane wala inqalab aaya nahin

ग़ज़ल

आने वाला इंक़लाब आया नहीं

प्रेम कुमार नज़र

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आने वाला इंक़लाब आया नहीं
क्या कोई अहल-ए-किताब आया नहीं

इस्म-ए-आज़म भी पढ़ा है बार बार
ग़ार से लेकिन जवाब आया नहीं

हो रहा है कुछ न कुछ ज़ेर-ए-ज़मीं
कोंपलें फूटीं गुलाब आया नहीं

रात भर फिर हिज्र का मौसम रहा
जिस को आना था वो ख़्वाब आया नहीं

ख़ुश्क-लब लौटे हैं क्यूँ सहरा-नवर्द
रास्ते में क्या सराब आया नहीं

मुझ को इक चश्मक थी सैल-ए-अश्क से
इस लिए मैं ज़ेर-ए-आब आया नहीं