आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए
तुझ से कैसे हो मिलन सब रास्ते धुँदला गए
किरची किरची ख़्वाहिशें आँखों में चुभ कर रह गईं
ज़र्द मौसम आस की हरियालियों को खा गए
मैं कि जिस ने हर सऊबत मुस्कुरा कर झेल ली
मंज़िलें आईं तो क्यूँ आँखों में आँसू आ गए
तेरे ना आने के दुख में शिद्दतें फूलों ने कीं
वक़्त से पहले ही सब गजरे मिरे मुरझा गए
क़हत जज़्बों का पड़ा वीराँ से हैं दिल के नगर
शहर पर आसेब शायद हिज्र के मंडला गए
दा'वा चाहत का नहीं पर जब उसे सोचा 'उरूज'
फूल ख़ुशबू रंग तारे आँख में लहरा गए
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ग़ज़ल
आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए
अाबिदा उरूज