आँधियाँ आती हैं और पेड़ गिरा करते हैं
हादसे ये तो यहाँ रोज़ हुआ करते हैं
उन के दिल में भी कोई खोज तो पिन्हाँ होगी
ये परिंदे जो हवाओं में उड़ा करते हैं
ख़ून का रंग लिए गर्म धुएँ के बादल
सर्द अख़बार के सीने से उठा करते हैं
इन अँधेरों में कोई राह तो रौशन होती
ये सितारे तो हर इक रात जला करते हैं
हार के ज़ख़्म कभी जीत की लज़्ज़त भी कभी
हम तसव्वुर में कई खेल रचा करते हैं
जिन के चेहरों पे कोई धूप न साया कोई
उन मकानों में अजब लोग रहा करते हैं
दिन के सहरा में जिसे ढूँड न पाएँ 'फ़िक्री'
शब के जंगल में वो आवाज़ सुना करते हैं
ग़ज़ल
आँधियाँ आती हैं और पेड़ गिरा करते हैं
प्रकाश फ़िक्री