आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
जिस तरह भी हो लाज जुनूँ की बचाई जाए
बे-आब ओ बे-गियाह है ये दिल का दश्त भी
इक नहर आँसुओं की यहाँ भी बहाई जाए
आजिज़ हैं अपने ताला-ए-बेदार से बहुत
हर रात हम को कोई कहानी सुनाई जाए
सब कुछ बदल गया है मगर लोग हैं ब-ज़िद
महताब ही में सूरत-ए-जानाँ दिखाई जाए
कुछ साग़रों में ज़हर है कुछ में शराब है
ये मसअला है तिश्नगी किस से बुझाई जाए
शहरों की सरहदों पे है सहराओं का हुजूम
क्या माजरा है आओ ख़बर तो लगाई जाए
नाज़िल हो जिस्म ओ रूह पे जब बे-हिसी का क़हर
उस वक़्त दोस्तो ये ग़ज़ल गुनगुनाई जाए
ग़ज़ल
आँधी की ज़द में शम-ए-तमन्ना जलाई जाए
शहरयार