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आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल | शाही शायरी
aanch aaegi na andar ki zaban tak ai dil

ग़ज़ल

आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल

रियाज़ मजीद

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आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल
कितनी देर और मिरी जान कहाँ तक ऐ दिल

हद ज़ियादा से ज़ियादा की कोई तो होगी
और इस हिर्स का फैलाव कहाँ तक ऐ दिल

तजरबा तजरबा आज़ाद रग-ओ-पै में रहा
कितनी अफ़्सुर्दगी है दहर से जाँ तक ऐ दिल

महक उड़ जाएगी तफ़्हीम के लब खुलने से
सहर इबलाग़ का है ज़ब्त-ए-बयाँ तक ऐ दिल

अक्स ओ आईने की सूरत है हमारा रिश्ता
हूँ तिरे साथ तू मेरा है जहाँ तक ऐ दिल

हैरत-आसार अजब ख़्वाब लिए बैठा हूँ
शायद आ जाए कोई मेरी दुकाँ तक ऐ दिल

शोर से अहल-ए-ख़बर के है 'रियाज़' आज़ुर्दा
कोई ले जाए उसे बे-ख़बराँ तक ऐ दिल