आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल
कितनी देर और मिरी जान कहाँ तक ऐ दिल
हद ज़ियादा से ज़ियादा की कोई तो होगी
और इस हिर्स का फैलाव कहाँ तक ऐ दिल
तजरबा तजरबा आज़ाद रग-ओ-पै में रहा
कितनी अफ़्सुर्दगी है दहर से जाँ तक ऐ दिल
महक उड़ जाएगी तफ़्हीम के लब खुलने से
सहर इबलाग़ का है ज़ब्त-ए-बयाँ तक ऐ दिल
अक्स ओ आईने की सूरत है हमारा रिश्ता
हूँ तिरे साथ तू मेरा है जहाँ तक ऐ दिल
हैरत-आसार अजब ख़्वाब लिए बैठा हूँ
शायद आ जाए कोई मेरी दुकाँ तक ऐ दिल
शोर से अहल-ए-ख़बर के है 'रियाज़' आज़ुर्दा
कोई ले जाए उसे बे-ख़बराँ तक ऐ दिल
ग़ज़ल
आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल
रियाज़ मजीद