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आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए | शाही शायरी
aalam-e-KHwab sahi KHwab mein chalte rahiye

ग़ज़ल

आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए

आबिद करहानी

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आलम-ए-ख़्वाब सही ख़्वाब में चलते रहिए
रात कट जाएगी करवट तो बदलते रहिए

किस को मालूम कहाँ से कोई पत्थर आ जाए
हौसला हो तो अंधेरों में निकलते रहिए

बन ही जाएगा कभी कोई ख़ुदी का पैकर
अपने एहसास की गर्मी से पिघलते रहिए

ज़िंदगी सिलसिला-ए-ख़्वाब-ए-तमन्ना है कोई
रात भर ख़्वाब को ख़्वाबों से बदलते रहिए

हम पे क्या होगा ज़माने की हवाओं का असर
आप मौसम की तरह रोज़ बदलते रहिए

ज़िंदगी क्या है सराबों का सफ़र है 'आबिद'
वक़्त की रेत पे दिन रात मचलते रहिए