आज तो रोने को जी हो जैसे
फिर कोई आस बंधी हो जैसे
शहर में फिरता हूँ तन्हा तन्हा
आश्ना एक वही हो जैसे
हर ज़माने की सदा-ए-मातूब
मेरे सीने से उठी हो जैसे
ख़ुश हुए तर्क-ए-वफ़ा कर के हम
अब मुक़द्दर भी यही हो जैसे
इस तरह शब गए टूटी है उमीद
कोई दीवार गिरी हो जैसे
यास-आलूद है एक एक घड़ी
ज़र्द फूलों की लड़ी हो जैसे
मैं हूँ और वादा-ए-फ़र्दा तेरा
और इक उम्र पड़ी हो जैसे
बे-कशिश है वो निगाह-सद-लुत्फ़
इक मोहब्बत की कमी हो जैसे
क्या अजब लम्हा-ए-ग़म गुज़रा है
उम्र इक बीत गई हो जैसे
ग़ज़ल
आज तो रोने को जी हो जैसे
राजेन्द्र मनचंदा बानी