आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है
हर तरफ़ सैर है तमाशा है
चेहरा-ए-यार ओ क़ामत-ए-ज़ेबा
गुल-ए-रंगीन ओ सर्व-ए-रअना है
मअ'नी-ए-हुस्न ओ मअ'नी-ए-ख़ूबी
सूरत-ए-यार सूँ हुवैदा है
दम-ए-जाँ-बख़्श नौ-ख़ताँ मुज कूँ
चश्मा-ए-ख़िज़्र है मसीहा है
कमर-ए-नाज़ुक ओ दहान-ए-सनम
फ़िक्र बारीक है मुअम्मा है
मू-ब-मू उस कूँ है परेशानी
ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का जिस कूँ सौदा है
क्या हक़ीक़त है तुझ तवाज़ो की
यू तलत्तुफ़ है या मुदावा है
सबब-ए-दिलरुबाई-ए-आशिक़
मेहर है लुत्फ़ है दिलासा है
जूँ 'वली' रात दिन है मह्व-ए-ख़याल
जिस कूँ तुझ वस्ल की तमन्ना है
ग़ज़ल
आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है
वली मोहम्मद वली