EN اردو
आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है | शाही शायरी
aaj sarsabz koh o sahra hai

ग़ज़ल

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

;

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है
हर तरफ़ सैर है तमाशा है

चेहरा-ए-यार ओ क़ामत-ए-ज़ेबा
गुल-ए-रंगीन ओ सर्व-ए-रअना है

मअ'नी-ए-हुस्न ओ मअ'नी-ए-ख़ूबी
सूरत-ए-यार सूँ हुवैदा है

दम-ए-जाँ-बख़्श नौ-ख़ताँ मुज कूँ
चश्मा-ए-ख़िज़्र है मसीहा है

कमर-ए-नाज़ुक ओ दहान-ए-सनम
फ़िक्र बारीक है मुअम्मा है

मू-ब-मू उस कूँ है परेशानी
ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का जिस कूँ सौदा है

क्या हक़ीक़त है तुझ तवाज़ो की
यू तलत्तुफ़ है या मुदावा है

सबब-ए-दिलरुबाई-ए-आशिक़
मेहर है लुत्फ़ है दिलासा है

जूँ 'वली' रात दिन है मह्व-ए-ख़याल
जिस कूँ तुझ वस्ल की तमन्ना है