आज मुद्दत में वो याद आए हैं
दर ओ दीवार पे कुछ साए हैं
आबगीनों से न टकरा पाए
कोहसारों से तो टकराए हैं
ज़िंदगी तेरे हवादिस हम को
कुछ न कुछ राह पे ले आए हैं
संग-रेज़ों से ख़ज़फ़-पारों से
कितने हीरे कभी चुन लाए हैं
इतने मायूस तो हालात नहीं
लोग किस वास्ते घबराए हैं
उन की जानिब न किसी ने देखा
जो हमें देख के शरमाए हैं
ग़ज़ल
आज मुद्दत में वो याद आए हैं
जाँ निसार अख़्तर