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आज कुछ यूँ शब-ए-तन्हाई का अफ़्साना चले | शाही शायरी
aaj kuchh yun shab-e-tanhai ka afsana chale

ग़ज़ल

आज कुछ यूँ शब-ए-तन्हाई का अफ़्साना चले

अनवर मोअज़्ज़म

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आज कुछ यूँ शब-ए-तन्हाई का अफ़्साना चले
रौशनी शम्अ' से दिल दर्द से बेगाना चले

शोला-दर-शोला किसी याद के चेहरे उभरें
मौज-दर-मौज हबाब-ए-रुख़-ए-जानाना चले

कुछ न हो आँख में बे-दर्द निगाहों के सिवा
गुफ़्तुगू साक़ी-ए-दौराँ से हरीफ़ाना चले

वक़्त झूमे कहीं बहके कहीं थम जाए कहीं
खिल उठें नक़्श-ए-क़दम यूँ कोई दीवाना चले

टूटने पाए न ये सिलसिला-ए-गर्दिश-ए-दर्द
दस्त-दर-दस्त छलकता हुआ पैमाना चले