आज कुछ यूँ शब-ए-तन्हाई का अफ़्साना चले
रौशनी शम्अ' से दिल दर्द से बेगाना चले
शोला-दर-शोला किसी याद के चेहरे उभरें
मौज-दर-मौज हबाब-ए-रुख़-ए-जानाना चले
कुछ न हो आँख में बे-दर्द निगाहों के सिवा
गुफ़्तुगू साक़ी-ए-दौराँ से हरीफ़ाना चले
वक़्त झूमे कहीं बहके कहीं थम जाए कहीं
खिल उठें नक़्श-ए-क़दम यूँ कोई दीवाना चले
टूटने पाए न ये सिलसिला-ए-गर्दिश-ए-दर्द
दस्त-दर-दस्त छलकता हुआ पैमाना चले
ग़ज़ल
आज कुछ यूँ शब-ए-तन्हाई का अफ़्साना चले
अनवर मोअज़्ज़म