आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान
सुब्ह तलक क्या जानिए क्या हो आँख लगे या जाए जान
पिछली रात का सन्नाटा कहता है अब क्या आएँगे
अक़्ल ये कहती है सो जाओ दिल कहता है एक न मान
मुल्क-ए-तरब के रहने वालो ये कैसी मजबूरी है
होंटों की बस्ती में चराग़ाँ दिल के नगर इतने सुनसान
उन की बाँहों के हल्क़े में इश्क़ बना है पीर-ए-तरीक़
अब ऐसे में बताओ यारो किस जा कुफ़्र किधर ईमान
हम न कहेंगे आप के आगे रो रो दीदे खोए हैं
आप ने बिपता सुन ली हमारी बड़ा करम लाखों एहसान
ग़ज़ल
आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान
इब्न-ए-सफ़ी