EN اردو
आज दरीचे में वो आना भूल गया | शाही शायरी
aaj dariche mein wo aana bhul gaya

ग़ज़ल

आज दरीचे में वो आना भूल गया

नज़ीर क़ैसर

;

आज दरीचे में वो आना भूल गया
मैं भी अपना दिया जलाना भूल गया

आज मुझे भी उस की याद नहीं आई
वो भी मेरे ख़्वाब में आना भूल गया

ख़त लिक्खा है लेकिन ख़त के कोने पर
वो होंटों से फूल बनाना भूल गया

चलते चलते मैं उस को घर ले आया
वो भी अपना हाथ छुड़ाना भूल गया

रूठ कर इक बिस्तर पे दोनों बैठे रहे
मैं उस को वो मुझे मनाना भूल गया

बेलें दीवारों से लिपटना भूल गईं
मौसम अपने फूल खिलाना भूल गया

धूप चढ़े तक दोनों घर में सोए रहे
मैं उस को वो मुझे जगाना भूल गया