आज भी तिश्ना-लबी तिश्ना-लबी है ऐ दोस्त
क्या न छलकेगी जो आँखों में भरी है ऐ दोस्त
जो कमी पहले थी वो फिर भी कमी है ऐ दोस्त
ये जो थोड़ी सी हँसी ज़ेर-ए-लबी है ऐ दोस्त
आप को देख मिरे ज़ौक़-ए-फ़ना को भी देख
ये तिरी शीशागरी दर्द-सरी है ऐ दोस्त
मय-ए-गुलफ़ाम में कुछ दुर्द-ए-तह-ए-जाम सही
वो ख़ुशी कैसी ख़ुशी जिस में कमी है ऐ दोस्त
ख़ाक में रंग-ए-गुलिस्ताँ को भला देख सकूँ
मिरी आँखों में अगर इतनी नमी है ऐ दोस्त
ताब-ए-परवाज़ थी जिन को वो गए भी 'मसऊद'
हम कहाँ जाएँ कि बे-बाल-ओ-परी है ऐ दोस्त

ग़ज़ल
आज भी तिश्ना-लबी तिश्ना-लबी है ऐ दोस्त
मसऊद हुसैन ख़ां