आज बेचैन है बीमार ख़ुदा ख़ैर करे
याद आता है रुख़-ए-यार ख़ुदा ख़ैर करे
अब नहीं ख़ैर किसी साहिब-ए-दिल की ऐ दोस्त
आज है हाथ में तलवार ख़ुदा ख़ैर करे
कौन होगा जिसे मैं अपना कहूँगा ऐ दिल
रूठे जाते हैं वो ग़म-ख़्वार ख़ुदा ख़ैर करे
वही जो इश्क़ में मसरूफ़ भी मसरूर भी था
वही 'सिद्दीक़' है बेज़ार ख़ुदा ख़ैर करे
ग़ज़ल
आज बेचैन है बीमार ख़ुदा ख़ैर करे
बाबू सि द्दीक़ निज़ामी