आज बे-आप हो गए हम भी
आप को पा के खो गए हम भी
दाने कम थे दुखों की सिमरन में
थोड़े मोती पिरो गए हम भी
देर से थे वो जिस के घेरे में
उसी झुरमुट में खो गए हम भी
जा कै ढूँडा कहाँ कहाँ न तुम्हें
जब न पाया तो खो गए हम भी
नाम जीने का जागना रख कर
आज बे नींद सो गए हम भी
रोएँगे गर तो जग-हँसाई हो
करते क्या चुप से हो गए हम भी
हाए रे 'आरज़ू' की बे-आसी
आप बे-बस थे रो गए हम भी
ग़ज़ल
आज बे-आप हो गए हम भी
आरज़ू लखनवी