EN اردو
आइना है ख़याल की हैरत | शाही शायरी
aaina hai KHayal ki hairat

ग़ज़ल

आइना है ख़याल की हैरत

औरंगज़ेब

;

आइना है ख़याल की हैरत
उस पे तेरे जमाल की हैरत

कोई चेहरा नहीं तमन्ना का
कुछ नहीं ख़द्द-ओ-ख़ाल की हैरत

कौन सा शर्क़ किस तरह का ग़र्ब
क्या जुनूब-ओ-शुमाल की हैरत

ऐसा करता हूँ बाँध देता हूँ
ज़ख़्म पर इंदिमाल की हैरत

देखने वाला भी परेशाँ है
टूटे शीशे में बाल की हैरत

दिल पे चलता है दर्द का जादू
आँख में है मलाल की हैरत

दे गया है जवाब आ कर वो
रह गई है सवाल की हैरत

सब को हैरत में डाल देती है
चाल पर खाई चाल की हैरत

खींच लेती है एक दिन ख़ुद ही
जल-परी को भी जाल की हैरत

तोहफ़ा मिलता है जब जनम-दिन पे
ख़त्म होती है साल की हैरत

तब्सिरे थे उरूज पर मेरे
मैं ने देखी ज़वाल की हैरत

सब अयाँ हो गया ज़माने पर
ख़त्म-शुद माह-ओ-साल की हैरत

अपना माज़ी बता रहा है 'ज़ेब'
लौट आएगी हाल की हैरत