आईनों से धूल मिटाने आते हैं
कुछ मौसम तो आग लगाने आते हैं
नींद तो गोया इन आँखों की दुश्मन है
मुझ को फिर भी ख़्वाब सुहाने आते हैं
इन आँखों में रंग तुम्हारे खुलते हैं
ये मौसम कब फूल खिलाने आते हैं
रोना हँसना हँसना रोना आदत है
हम को भी कुछ दर्द छुपाने आते हैं
शबनम शबनम ख़्वाब उतरते हैं मुझ पर
सौ सौ सूरज धूप उगाने आते हैं
जिस्म दुकाँ है ज़ेहन बिकाऊ शहरों में
जंगल तो दो-चार दिवाने आते हैं

ग़ज़ल
आईनों से धूल मिटाने आते हैं
सलीम मुहीउद्दीन