आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएँगे जब जब अँधेरे ख़ुद को तन्हा पाओगे
आरज़ू अरमान ख़्वाहिश जुस्तुजू वा'दे वफ़ा
दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोके खाओगे
हर हसीं मंज़र से यारो फ़ासले क़ाइम रखो
चाँद गर धरती पे उतरा देख कर डर जाओगे
ज़िंदगी के चंद लम्हे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में हर-दम रहे तो ख़ुद भी गुम हो जाओगे
उस गली में जा रहे हो इश्क़ है रुस्वा जहाँ
सोच लो फिर सोच लो पछताओगे पछताओगे
ग़ज़ल
आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
दिनेश ठाकुर