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आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम | शाही शायरी
aaina ban ke apna tamasha dikhaen hum

ग़ज़ल

आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम

अहमद शहरयार

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आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम
यूँ सामने रहें कि नज़र भी न आएँ हम

मुमकिन है दौर-ए-जश्न-ए-चराग़ाँ हो जब यहाँ
वो तीरगी बढ़े कि सहीफ़े जलाएँ हम

दरपेश है गुज़िश्ता रुतों का सफ़र हमें
हैरत न कर कि लौट के वापस न आएँ हम

तौफ़ीक़-ए-सैर-ए-बाग़ अगर हो तो अब की शाम
दिल की जगह शजर पे परिंदे बनाएँ हम

ख़ामोश हो रहो कि सर-ए-शहर-ए-आरज़ू
उफ़्ताद वो पड़ी है कि अब क्या बताएँ हम