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आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी | शाही शायरी
aahaT pe kan dar pe nazar is tarah na thi

ग़ज़ल

आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी

बशर नवाज़

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आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी
एक एक पल की हम को ख़बर इस तरह न थी

था दिल में दर्द पहले भी लेकिन न इस क़दर
वीराँ तो थी हयात मगर इस तरह न थी

हर एक मोड़ मक़्तल-ए-अरमान-ओ-आरज़ू
पहले तो तेरी राहगुज़र इस तरह न थी

जब तक सबा ने छेड़ा न था निकहत-ए-गुलाब
कूचा-ब-कूचा महव-ए-सफ़र इस तरह न थी

बरसों में पहले होती थी नम आस्तीं कभी
अर्ज़ां मता-ए-दीदा-ए-तर इस तरह न थी