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आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा | शाही शायरी
aah-o-fariyaad ka asar dekha

ग़ज़ल

आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा

सय्यद हामिद

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आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा
ख़ुद को मजबूर बेशतर देखा

बन गया है नक़ाब-ए-तंग-दिली
शोहरा-ए-वुसअ'त-ए-नज़र देखा

जिस्म ने डाल दी सिपर जब से
रूह को आज़िम-ए-सफ़र देखा

हश्र का मो'तक़िद हुआ जिस ने
मंज़र-ए-मतला-ए-सहर देखा

नाव साहिल पे लग गई आ कर
अपने शाना पे उन का सर देखा

तमअ' पिंदार जौर हिर्स फ़रेब
गामज़न कारवान-ए-ज़र देखा

शुबह-ए-ज़ौक़-ए-नज़र न हो जिस पर
एक ऐसा भी दीदा-वर देखा

कर लिया उन के इज्तिनाब पे सब्र
जब से अग़माज़ राहबर देखा

दिल का आईना रू-ब-रू लाए
इस लिए उन को ख़ुद-निगर देखा

जिस की एक अपनी काएनात न हो
'हामिद' ऐसा कोई बशर देखा