आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा
ख़ुद को मजबूर बेशतर देखा
बन गया है नक़ाब-ए-तंग-दिली
शोहरा-ए-वुसअ'त-ए-नज़र देखा
जिस्म ने डाल दी सिपर जब से
रूह को आज़िम-ए-सफ़र देखा
हश्र का मो'तक़िद हुआ जिस ने
मंज़र-ए-मतला-ए-सहर देखा
नाव साहिल पे लग गई आ कर
अपने शाना पे उन का सर देखा
तमअ' पिंदार जौर हिर्स फ़रेब
गामज़न कारवान-ए-ज़र देखा
शुबह-ए-ज़ौक़-ए-नज़र न हो जिस पर
एक ऐसा भी दीदा-वर देखा
कर लिया उन के इज्तिनाब पे सब्र
जब से अग़माज़ राहबर देखा
दिल का आईना रू-ब-रू लाए
इस लिए उन को ख़ुद-निगर देखा
जिस की एक अपनी काएनात न हो
'हामिद' ऐसा कोई बशर देखा
ग़ज़ल
आह-ओ-फ़रियाद का असर देखा
सय्यद हामिद