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आग इक और लगा देंगे हमारे आँसू | शाही शायरी
aag ek aur laga denge hamare aansu

ग़ज़ल

आग इक और लगा देंगे हमारे आँसू

नौशाद अली

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आग इक और लगा देंगे हमारे आँसू
निकले आँखों से अगर दिल के सहारे आँसू

हासिल-ए-ख़ून-ए-जिगर दिल के हैं पारे आँसू
बे-बहा लाल-ओ-गुहर हैं ये हमारे आँसू

है कोई अब जो लगी दिल की बुझाए मेरी
हिज्र में रोके गँवा बैठा हूँ सारे आँसू

उस मसीहा की जो फ़ुर्क़त में हूँ रोया शब-भर
बन गए चर्ख़-ए-चहारुम के सितारे आँसू

ख़ून-ए-दिल ख़ून-ए-जिगर बह गया पानी हो कर
कुछ न काम आए मोहब्बत में हमारे आँसू

मुझ को सोने न दिया अश्क-फ़िशानी ने मिरी
रात भर गिनते रहे चर्ख़ के तारे आँसू

वो सँवर कर कभी आए जो तसव्वुर में मिरे
चश्म-ए-मुश्ताक़ ने सदक़े में उतारे आँसू

पास रुस्वाई ने छोड़ा न सुकूँ का दामन
गिरते गिरते रुके आँखों के किनारे आँसू

लुत्फ़ अब आया मिरी अश्क-फ़िशानी का हुज़ूर
प्यारी आँखों से किसी के बहे प्यारे आँसू

मेरी क़िस्मत में है रोना मुझे रो लेने दो
तुम न इस तरह बहाओ मिरे प्यारे आँसू

माह-ओ-अंजुम पे न फिर अपने कभी नाज़ करे
देख ले चर्ख़ किसी दिन जो हमारे आँसू

यूँ ही तूफ़ाँ जो उठाते रहे कुछ दिन 'नौशाद'
आग दुनिया में लगा देंगे हमारे आँसू