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आए मशरिक़ से शहसवार बहुत | शाही शायरी
aae mashriq se shahsawar bahut

ग़ज़ल

आए मशरिक़ से शहसवार बहुत

हामिदी काश्मीरी

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आए मशरिक़ से शहसवार बहुत
किस को था उन का इंतिज़ार बहुत

क़ाफ़िलों की कोई ख़बर सी नहीं
दूर उठता रहा ग़ुबार बहुत

सुब्ह होने तक उस ने जान न दी
उम्र भर था ख़ुद-इख़्तियार बहुत

फिर कोई सानेहा हुआ होगा
मेहरबाँ क्यूँ हैं ग़म-गुसार बहुत

क्यूँ है हर ज़र्रा कर्बला-मंज़र
है हमें उन पे ए'तिबार बहुत

हो गई सब के आगे रुस्वाई
किस हुनर पर था इफ़्तिख़ार बहुत