आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
'मुसहफ़'-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न की आयात के बा'द
ऐ वतन ख़ाक-ए-वतन वो भी तुझे दे देंगे
बच गया है जो लहू अब के फ़सादात के बा'द
नार-ए-नमरूद यही और यही गुलज़ार-ए-ख़लील
कोई आतिश नहीं आतिश-कदा-ए-ज़ात के बा'द
राम-ओ-गौतम की ज़मीं हुर्मत-ए-इंसाँ की अमीं
बाँझ हो जाएगी क्या ख़ून की बरसात के बा'द
तिश्नगी है कि बुझाए नहीं बुझती 'सरदार'
बढ़ गई कौसर-ओ-तसनीम की सौग़ात के बा'द
ग़ज़ल
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
अली सरदार जाफ़री