आबाद ग़म-ओ-दर्द से वीराना है उस का
टूटा हुआ जो दिल है वो काशाना है उस का
जिस दिल में कि है शौक़ वो पैमाना है उस का
जिस आँख में है कैफ़ वो मय-ख़ाना है उस का
जब देखिए कहता है वही ज़िक्र सुनाओ
मा'लूम हुआ शौक़ भी दीवाना है उस का
बेहोश अगर मैं हूँ तो बा-होश कहाँ है
जो ख़ल्क़ है इस दहर में दीवाना है उस का
दिन-रात है ये मस्कन-ए-अनवार-ए-तसव्वुर
सीना जिसे कहते हैं परी-ख़ाना है उस का
जोबन की सफ़ाई से फिसलती हैं निगाहें
पड़ती है जिधर आँख परी-ख़ाना है उस का
ऐ दिल हवस-ए-वस्ल से मुश्ताक़ हैं महरूम
जाँ अव्वल-ए-दीदार में बेगाना है उस का
जो सीना-ए-रौशन है वो है मंज़िल-ए-उल्फ़त
जो दिल सिफ़त-ए-शम्अ' है परवाना है उस का
कहते हैं जिसे हुस्न वो है शम-ए-जहाँ-ताब
कहते हैं जिसे इश्क़ वो परवाना है उस का
जब फ़स्ल-ए-गुल आती है सदा देती है वहशत
ज़ंजीर का गुल नाला-ए-मस्ताना है उस का
देखा तो सफ़र रूह को होता है उसी से
कहते हैं जिसे मौत वो परवाना है उस का
गौहर से फ़ुज़ूँ दीदा-ए-आशिक़ के हैं आँसू
दामन में है मा'शूक़ के जो दाना है उस का
कुछ रुत्बा-ए-आशिक़ से भी ऐ जाँ हो ख़बर-दार
सामान कई रोज़ से शाहाना है उस का
मुँह आशिक़-ए-सादिक़ के न चढ़ वाइज़-ए-मक्कार
हर हाल में जो हाल है रिंदाना है उस का
आगाह नहीं क़िस्सा-ए-मंसूर से ऐ दिल
दुश्मन हों ज़न-ओ-मर्द वो याराना है उस का
क्या पूछते हो हाल-ए-'नसीम'-ए-जिगर-ए-अफ़गार
देखा जिसे ख़ुश-वज़अ' वो दीवाना है उस का
ग़ज़ल
आबाद ग़म-ओ-दर्द से वीराना है उस का
नसीम देहलवी