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आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है | शाही शायरी
aab o hawa hai barsar-e-paikar kaun hai

ग़ज़ल

आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है

सलीम कौसर

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आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
मेरे सिवा ये मुझ में गिरफ़्तार कौन है

इक रौशनी सी राह दिखाती है हर तरफ़
दोश-ए-हवा पे साहिब-ए-रफ़्तार कौन है

एक एक कर के ख़ुद से बिछड़ने लगे हैं हम
देखो तो जा के क़ाफ़िला-सालार कौन है

बोसीदगी के ख़ौफ़ से सब उठ के चल दिए
फिर भी ये ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार कौन है

क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है

फैला रहा है दामन-ए-शब की हिकायतें
सूरज नहीं तो ये पस-ए-कोहसार कौन है

क्या शय है जिस के वास्ते टूटे पड़े हैं लोग
ये भीड़ क्यूँ है रौनक़-ए-बाज़ार कौन है

ऐ दिल अब अपनी लौ को बचा ले कि शहर में
तू जल-बुझा तो तेरा आज़ा-दार कौन है

अब तक इसी ख़याल से सोए नहीं 'सलीम'
हम सो गए तो फिर यहाँ बेदार कौन है