आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
मेरे सिवा ये मुझ में गिरफ़्तार कौन है
इक रौशनी सी राह दिखाती है हर तरफ़
दोश-ए-हवा पे साहिब-ए-रफ़्तार कौन है
एक एक कर के ख़ुद से बिछड़ने लगे हैं हम
देखो तो जा के क़ाफ़िला-सालार कौन है
बोसीदगी के ख़ौफ़ से सब उठ के चल दिए
फिर भी ये ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार कौन है
क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम
हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है
फैला रहा है दामन-ए-शब की हिकायतें
सूरज नहीं तो ये पस-ए-कोहसार कौन है
क्या शय है जिस के वास्ते टूटे पड़े हैं लोग
ये भीड़ क्यूँ है रौनक़-ए-बाज़ार कौन है
ऐ दिल अब अपनी लौ को बचा ले कि शहर में
तू जल-बुझा तो तेरा आज़ा-दार कौन है
अब तक इसी ख़याल से सोए नहीं 'सलीम'
हम सो गए तो फिर यहाँ बेदार कौन है
ग़ज़ल
आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है
सलीम कौसर