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आ मिरी चश्म-ए-पुर-ख़ुमार में आ | शाही शायरी
aa meri chashm-e-pur-KHumar mein aa

ग़ज़ल

आ मिरी चश्म-ए-पुर-ख़ुमार में आ

सय्यद मज़हर गिलानी

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आ मिरी चश्म-ए-पुर-ख़ुमार में आ
आ मिरे सीना-ए-फ़िगार में आ

आ कि तेरे बग़ैर कैफ़ नहीं
मेरी ग़म आफ़रीं बहार में आ

दिल को तेरे सदा क़रार नहीं
आ इस उजड़े हुए दयार में आ

रूह को ताब-ए-इंतिज़ार नहीं
मेरे तरसे हुए कनार में आ

दीदा-ए-तर पुकारते हैं तुझे
आ कभी बज़्म-ए-सोगवार में आ

आज 'मज़हर' तुझे पुकारता है
आज आ सहन-ए-लाला-ज़ार में आ