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आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर | शाही शायरी
aa kidhar hai tu saqi-e-maKHmur

ग़ज़ल

आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

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आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर
भर के दे जाम-ए-बादा-ए-अंगूर

कोई जाम-ए-शराब ऐसा पिला
जिस से शादी करे दिल-ए-रंजूर

रंज-ए-गेती से दिल मुकद्दर है
भर के दे मय से साग़र-ए-बिल्लोर

आज यौम-ए-ज़फ़र दो-शोहरा है
तालिब-ए-ऐश है दिल-ए-जम्हूर

मार कर देव-ए-बद को लंका से
राम आए मुज़फ़्फ़र-ओ-मंसूर

राम-ओ-सीता अवध में जब आए
दिल-ए-कौशल्या हुआ मसरूर

तख़्त-ए-लंका दिया विभीषन को
जब हुआ क़त्ल रावण-ए-मक़हूर

दिल सुमित्रा का भी हुआ ख़ुरसंद
देखा लछमन का जब रुख़-ए-पुर-नूर

काश दशरथ भी ज़िंदा होते आज
था न ईश्वर को ये मगर मंज़ूर

दोस्तों को ये दिन मुबारक हो
हो मुबारक उन्हें ये ऐश-ओ-सुरूर

साल पूछे अगर कोई कह दो
आज मारा है रावण-ए-मग़रूर