आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर 
भर के दे जाम-ए-बादा-ए-अंगूर 
कोई जाम-ए-शराब ऐसा पिला 
जिस से शादी करे दिल-ए-रंजूर 
रंज-ए-गेती से दिल मुकद्दर है 
भर के दे मय से साग़र-ए-बिल्लोर 
आज यौम-ए-ज़फ़र दो-शोहरा है 
तालिब-ए-ऐश है दिल-ए-जम्हूर 
मार कर देव-ए-बद को लंका से 
राम आए मुज़फ़्फ़र-ओ-मंसूर 
राम-ओ-सीता अवध में जब आए 
दिल-ए-कौशल्या हुआ मसरूर 
तख़्त-ए-लंका दिया विभीषन को 
जब हुआ क़त्ल रावण-ए-मक़हूर 
दिल सुमित्रा का भी हुआ ख़ुरसंद 
देखा लछमन का जब रुख़-ए-पुर-नूर 
काश दशरथ भी ज़िंदा होते आज 
था न ईश्वर को ये मगर मंज़ूर 
दोस्तों को ये दिन मुबारक हो 
हो मुबारक उन्हें ये ऐश-ओ-सुरूर 
साल पूछे अगर कोई कह दो 
आज मारा है रावण-ए-मग़रूर
        ग़ज़ल
आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

