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आ कि हस्ती बे-लब-ओ-बे-जोश है तेरे बग़ैर | शाही शायरी
aa ki hasti be-lab-o-be-gosh hai tere baghair

ग़ज़ल

आ कि हस्ती बे-लब-ओ-बे-जोश है तेरे बग़ैर

सीमाब अकबराबादी

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आ कि हस्ती बे-लब-ओ-बे-जोश है तेरे बग़ैर
काएनात इक महशर-ए-ख़ामोश है तेरे बग़ैर

आ कि फिर दिल में नहीं उठती कोई मौज-ए-नशात
सर्द पानी बादा-ए-सर-जोश है तेरे बग़ैर

नींद आ आ कर उचट जाती है तेरी याद में
तार-ए-बिस्तर नश्तर-ए-आग़ोश है तेरे बग़ैर

जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में था
अब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर

ज़िंदगी तुझ से इबारत थी मगर जब तू नहीं
ज़िंदगी का अपनी किस को होश है तेरे बग़ैर

आ कि मौज़ूअ-ए-ग़ज़ल को ढूँढती है हर निगाह
नग़्मा-ए-मुत्रिब बला-ए-गोश है तेरे बग़ैर

क्या ख़बर 'सीमाब' कब घबरा के दे दे अपनी जान
ज़ब्त गो अब तक तहम्मुल-कोश है तेरे बग़ैर