EN اردو
आ गया हो न कोई भेस बदल कर देखो | शाही शायरी
aa gaya ho na koi bhes badal kar dekho

ग़ज़ल

आ गया हो न कोई भेस बदल कर देखो

मख़मूर सईदी

;

आ गया हो न कोई भेस बदल कर देखो
दो क़दम साए के हमराह भी चल कर देखो

मेहमाँ रौशनियो सख़्त अँधेरा है यहाँ
पाँव रखना मिरी चौखट पे सँभल कर देखो

कभी ऐसा न हो पहचान न पाओ ख़ुद को
बार बार अपने इरादे न बदल कर देखो

अब्र आएगा तभी प्यास बुझाने पहले
रेग-ए-सहरा की तरह धूप में जल कर देखो

दिन की देखी हुई हर शक्ल बदल जाएगी
रात के साथ ज़रा घर से निकल कर देखो

मोम हो जाएगा पत्थर सा ये दिल सीने में
लम्हा भर को किसी पहलू में पिघल कर देखो

उम्र-ए-रफ़्ता को कहाँ ढूँढ रहे हो 'मख़मूर'
उस के कूचे में मिलेगी वहीं चल कर देखो