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आ दिल में तुझे कहीं छुपा लूँ | शाही शायरी
aa dil mein tujhe kahin chhupa lun

ग़ज़ल

आ दिल में तुझे कहीं छुपा लूँ

शोहरत बुख़ारी

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आ दिल में तुझे कहीं छुपा लूँ
लोगों की निगाह से बचा लूँ

क्यूँ तुझ पे गुमान-ए-बे-वफ़ाई
क्यूँ अपने ही दिल की बद-दुआ लूँ

तुझ सा कोई दूसरा नहीं है
चाहे तो तिरी क़सम उठा लूँ

दीवार-ए-उम्मीद ढे रही है
तस्वीर तिरी कहाँ लगा लूँ

आईने की धुँद साफ़ कर के
क्यूँ ख़ुद को न हाल-ए-दिल सुना लूँ

कटते ही नहीं पहाड़ से दिन
'शोहरत' मैं उसे कहाँ से पा लूँ