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Visaal शायरी | शाही शायरी

Visaal

62 शेर

तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ
दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश




'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी
ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है

अहमद फ़राज़




वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का
कुल्ली करो हुज़ूर हुआ है दहन ख़राब

अहमद हुसैन माइल




हिज्र इक वक़्फ़ा-ए-बेदार है दो नींदों में
वस्ल इक ख़्वाब है जिस की कोई ताबीर नहीं

अहमद मुश्ताक़




मिलने की ये कौन घड़ी थी
बाहर हिज्र की रात खड़ी थी

अहमद मुश्ताक़




वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
जागना रात भर मुसीबत है

whether in blissful union or in separation
staying up all night, is a botheration

अकबर इलाहाबादी




आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी