यकुम जनवरी है नया साल है
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है
अमीर क़ज़लबाश
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साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं
कुछ पुराने से कैलन्डर ज़ेहन की दीवार पर
आज़ाद गुलाटी
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फिर नए साल की सरहद पे खड़े हैं हम लोग
राख हो जाएगा ये साल भी हैरत कैसी
अज़ीज़ नबील
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इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ
लो साथ छोड़ने लगा आख़िर ये साल भी
हफ़ीज़ मेरठी
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इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को
इब्न-ए-इंशा
मुंहदिम होता चला जाता है दिल साल-ब-साल
ऐसा लगता है गिरह अब के बरस टूटती है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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एक लम्हा लौट कर आया नहीं
ये बरस भी राएगाँ रुख़्सत हुआ
इनाम नदीम
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