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Kashti शायरी | शाही शायरी

Kashti

12 शेर

उस ना-ख़ुदा के ज़ुल्म ओ सितम हाए क्या करूँ
कश्ती मिरी डुबोई है साहिल के आस-पास

हसरत मोहानी




कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ
अपनी आँखें मिरी आँखों के मुक़ाबिल लाओ

जमुना प्रसाद राही




दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती
कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा

from the storms of the seas the ship might well survive
but if the storm is in the ship, no shore can then arrive

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद




अब नज़अ का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है तो बोझ उतारा करते हैं

my end is now upon me, take back your
for when a ship is sinking, the burden is removed

क़मर जलालवी




अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है

क़तील शिफ़ाई