ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
आह करता हूँ तो सय्याद ख़फ़ा होता है
क़मर जलालवी
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फड़कूँ तो सर फटे है न फड़कूँ तो जी घटे
तंग इस क़दर दिया मुझे सय्याद ने क़फ़स
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़
शहपर रसूल
ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार
शोहरत बुख़ारी